हज़ारों ने दिल तोड़ा है,
लाखों ने हाथ छोड़ा है,
दुश्मनों के कई वार झेले हैं हमने,
लेकिन उफ़्फ़ न निकली कभी,
के हाथ मिलानेवालों से डर लगता है, आज कल,
हमें तो दोस्तों को भी गले लगाने से डर लगता है, आज काल।
चुप रहना नसीब ने सिखा दिया,
थोड़ा-सा जो बचा था, वो भी भूल दिया,
कभी सिर्फ़ तुम ही तुम थे, इस ज़ुबान पर,
मुझे याद नहीं, कब मैंने अपनी आवाज़ को ही भुला दिया,
यह सीना ख़ाली हो गया, लेकिन सदियों के घाँव अब तक भरे नहीं,
तुम फिर किसी मोड़ पर मिल ना जाना,
के दिल की धड़कन की याद दिलानेवालों से डर लगता आज कल,
हमें तो यारों को भी गले लगाने से डर लगता है, आज काल।
पत्थर को भी, ठंडी हवा के झोकों से सुकून मिलता हो,
लेकिन राख पर बारिश की बूँदों से जलन कभी बुझी नहीं,
बड़ी बेरहम, कड़ी धूप में,
शोलों-सी रेत पर चलते चलते उमर निकल गयी,
के तेरे नाज़ुक, नरम, भीगे बदन को छूने से डर लगता है, आज कल,
ज़िंदगी, मेरी यारा, तुझे गले लगाने से डर लगता है, आज कल,
हमें तो, तुझे भी गले लगाने से डर लगता है, आज कल।
संजय नायर
५ अख़्तूबर २०२०
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